Tuesday 14 June 2011

vatsaavitridevi

वट पौर्णिमा -जेष्ठ पौर्णिमा म्हटले कि सत्यवान -सावित्रीची कथा डोळ्या समोर येते पण हे सावित्रीदेवीचे व्रत आहे.सौभाग्यासाठी वडाची पूजा करतात.वेद जननी सावित्रीची पूजा सर्वप्रथम ब्र्ह्मानी केली नंतर सर्व देवानी केली .राजा अश्वपतीने हिची पूजा केली म्हणून हिच्या पोटी सावित्रीने जन्म घेतला तीच हि सत्यवान कथेतील सावित्री होय .पराशर ऋषींनी राजा अश्वपती व राणी माधवी कडून हे सावित्री व्रत करून घेतले होते जेष्ठ त्रयोदशी दिवशी व्रतस्थ राहून चतुर्दशी दिवशी हे व्रत करावे .मुहूर्त पाहून भक्तीने सावित्रीदेवीचे पूजन करावे हे व्रत चौदा वर्षे करावे चौदा फळे व चौदा नैवेद्य दाखवावेत.एक मंगल कलश स्थापन करून सावित्रीदेवीचे विधी पूर्वक पूजन करावे माध्यंदिन शाखे मध्ये याचे सविस्तर वर्णन आहे जगद्धाता प्रभूची प्राणप्रिया सावित्रीला ;मोक्षदा .शांता सुखदा ,सर्व संपत स्वरूपा असेही म्हणतात सर्व संपतप्रदात्री  हि देवी वेदाची अधिष्ठात्री देवी आहे षोडश  उपचारांनी हिची पूजा करावी ॐ  सावित्र्यै स्वाहा |असा जप करावा 
ब्र्ह्नादेवानी केलेली सावित्रीची स्तुती 
सचिदानन्दरूपे त्वं  मूल प्रकृति स्वरुपिणि| हिरण्यगर्भरूपे त्वं  प्रसन्ना भव सुन्दरी |
तेजःस्वरुपे परमे  परमानन्दरूपिणी| द्वि जातीनां  जातिरूपे प्रसन्ना भव सुन्दरी |
नित्ये नित्यप्रिये देवि नित्यानद स्वरुपिणि| सर्व मङ्गले  च प्रसन्ना  भव सुन्दरी |
सर्व स्वरुपे  विप्राणां  मन्त्रसारे  परात्परे | सुखदे मोक्षदे देवि  प्रसन्ना भव सुन्दरी |
विप्रपापेध्मदाहाय  ज्वलदग्निशिखोपमे | ब्र्ह्नतेज् प्रदे देवि प्रसन्ना भव सुन्दरी |
कायेन मनसा   वाचा  यत्पापं  कुरुते नरः | तत्  त्वत्स्मरण मात्रेण  भस्मीभूतं भविष्यति |

Monday 6 June 2011

kumaarikaa pujana

  कुमारी पूजन 

बोडण तसेच नवरात्री मध्ये कुमारी पूजनाचे विशेष महत्व आहे .नऊ सुवासिनी एक कुमारी फळ समान आहे असे म्हटले जाते .पूजनाची कुमारी कुरूप नसावी ,तसेच रोगरहित असावी .एक वर्षीय कुमारिकेचे पूजन करू नये .दोन वर्षापासून दहा वर्षापर्यंत कुमारी पुजेस योग्य असते .दोन वर्षाची कुमारी सर्व श्रेष्ठ मानतात.दोन वर्षाची 'कुमारी ',तीन वर्षाची त्रिमूर्ती ,चार वर्षाची कल्याणी ,पाच वर्षाची रोहिणी ,सहा वर्षाची काली,सात वर्षाची चंडिका,आठ वर्षाची शांभवी ,नऊ वर्षाची दुर्गा आणि दहा वर्षाची सुभद्रा अशी नावे आहेत .
संपूर्ण मनोरथा साठी ब्राह्मण कुमारी ,यश मिळवण्या साठी क्षत्रिय कुमारी ,धन प्राप्तीसाठी वैश्य कुमारी ,आणि पुत्र प्राप्तीसाठी शुद्र कुमारिकेचे पूजन करावे .
                         मन्त्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूप धारिणीं |
                        नवदुर्गात्मिका  साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम् |
   या मन्त्राने आवाहन करावे .पुढील नाव मंत्रांनी कुमारिकेची गाब्ध ,फुल ,धूप ,दीप , नैवेद्य आणि अलंकारांनी पूजा करावी .
कुमारी मंत्र -
                    जगत्पुज्ये जगद्वन्द्ये  सर्व शक्तिस्वरुपिणी|
                   पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमो ऽस्तुते |
त्रिमुर्ति मन्त्र 
                  त्रिपुरां त्रिपुरधारां त्रिवर्गज्ञानरूपिणीम्|
                 त्रै लोक्य वन्दितां  देवीं त्रिमुर्ति पूजयाम्यहम्|
कल्याणी मन्त्र 
                 कालात्मिकां कालातीतां कारुण्य हृदयां शिवाम्|
                कल्याणजननींदेवीं कल्याणीं  पूजयाम्यहम् |
रोहिणी मन्त्र 
                  अधिमादिगुणाधारामकाराद्यक्षरात्मिकाम् 
                 अनन्तशक्तिकाम  लक्ष्मीं  रोहिणीं पूजयाम्यहम् |
कालिका मन्त्र 
                कामाचारां  शुभां  कान्तां कालचक्रस्वरुपिणीम् |
               कामदां  करुणोदारां कालिकां पूजयाम्यहम् |
चण्डिका मन्त्र 
               चण्डवीरां चण्डमायां  चण्डमुण्डप्रभज्जिनीम् |
             पूजयामि सदा देवीं चण्डिकां  चण्ड विक्रमाम् |
शान्भवी मन्त्र 
             सदानद्करीं शान्तां सर्वदेवनमस्कृताम् 
            सर्व भुतात्मिकां   लक्ष्मीं शाम्भवी पूजयाम्यहम् |
दुर्गा मन्त्र 
             दुर्गमे दुस्तरे कार्ये भव दुःख विनाशिनीम् 
             पूजयामि सदा भक्त्या दुर्गां दुर्गति नाशिनीम |
सुभद्रा मन्त्र 
            सुन्दरीं सुवर्णवर्णाभां सुख सौभाग्य दायिनीम|
             स कुमारी पूजन 

बोडण तसेच नवरात्री मध्ये कुमारी पूजनाचे विशेष महत्व आहे .नऊ सुवासिनी एक कुमारी फळ समान आहे असे म्हटले जाते .पूजनाची कुमारी कुरूप नसावी ,तसेच रोगरहित असावी .एक वर्षीय कुमारिकेचे पूजन करू नये .दोन वर्षापासून दहा वर्षापर्यंत कुमारी पुजेस योग्य असते .दोन वर्षाची कुमारी सर्व श्रेष्ठ मानतात.दोन वर्षाची 'कुमारी ',तीन वर्षाची त्रिमूर्ती ,चार वर्षाची कल्याणी ,पाच वर्षाची रोहिणी ,सहा वर्षाची काली,सात वर्षाची चंडिका,आठ वर्षाची शांभवी ,नऊ वर्षाची दुर्गा आणि दहा वर्षाची सुभद्रा अशी नावे आहेत .
संपूर्ण मनोरथा साठी ब्राह्मण कुमारी ,यश मिळवण्या साठी क्षत्रिय कुमारी ,धन प्राप्तीसाठी वैश्य कुमारी ,आणि पुत्र प्राप्तीसाठी शुद्र कुमारिकेचे पूजन करावे .
                         मन्त्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूप धारिणीं |
                        नवदुर्गात्मिका  साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम् |
   या मन्त्राने आवाहन करावे .पुढील नाव मंत्रांनी कुमारिकेची गाब्ध ,फुल ,धूप ,दीप , नैवेद्य आणि अलंकारांनी पूजा करावी .
कुमारी मंत्र -
                    जगत्पुज्ये   जगद्वन्द्ये   सर्वशक्तिस्वरुपिणी|
                   पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमो ऽस्तुते |
त्रिमुर्ति मन्त्र 
                  त्रिपुरां त्रिपुरधारां त्रिवर्गज्ञानरूपिणीम्|
                 त्रै लोक्य वन्दितां  देवीं त्रिमुर्ति पूजयाम्यहम्|
कल्याणी मन्त्र 
                 कालात्मिकां कालातीतां कारुण्य हृदयां शिवाम्|
                कल्याणजननींदेवीं कल्याणीं  पूजयाम्यहम् |
रोहिणी मन्त्र 
                  अधिमादिगुणाधारामकाराद्यक्षरात्मिकाम् 
                 अनन्तशक्तिकाम  लक्ष्मीं  रोहिणीं पूजयाम्यहम् |
कालिका मन्त्र 
                कामाचारां  शुभां  कान्तां कालचक्रस्वरुपिणीम् |
               कामदां  करुणोदारां कालिकां पूजयाम्यहम् |
चण्डिका मन्त्र 
               चण्डवीरां चण्डमायां  चण्डमुण्डप्रभज्जिनीम् |
             पूजयामि सदा देवीं चण्डिकां  चण्ड विक्रमाम् |
शान्भवी मन्त्र 
             सदानद्करीं शान्तां सर्वदेवनमस्कृताम् 
            सर्व भुतात्मिकां   लक्ष्मीं शाम्भवी पूजयाम्यहम् |
दुर्गा मन्त्र 
             दुर्गमे दुस्तरे कार्ये भव दुःख विनाशिनीम् 
             पूजयामि सदा भक्त्या दुर्गां दुर्गति नाशिनीम |
सुभद्रा मन्त्र 
            सुन्दरीं सुवर्णवर्णाभां सुख सौभाग्य दायिनीम|
             सद्रजननीं  देवीं सुभद्रां  पूजयाम्यहम्|


द्रजननीं  देवीं सुभद्रां  पूजयाम्यहम्|


Thursday 2 June 2011

Shiva krut Devi stuti


श्री शिव कृत दुर्गा स्तोत्रम्।
श्री महादेव उवाच 
रक्ष रक्ष महादेवि दुर्गे दुर्गति नाशिनि  मां भक्तंमनुरक्तं  शत्रु ग्रस्तं कृपामयि 
विष्णु माये महाभागे नारायणि सनातनि  ब्रह्मस्वरुपे परमे नित्यान्द्स्वरुपिणि॥
त्वं  ब्रह्मादिदेवानामंम्बिके  जगदम्बिके  त्वं साकारे  गुणतो निराकारे  निर्गु णात्॥
मायया पुरुषस्त्वं   मायया प्रकृतिः स्वयम्  तयोः परं ब्रह्म परं त्वं बिभर्ति सनातनि 
वेदानां जननि त्वं  सावित्री  परात्परा। वैकुण्ठे  महालाक्ष्मिः सर्वसंपत्स्वरुपिणी 
मर्त्यलक्ष्मीश्च क्षीरोदे कामिनी शेषशायीनः  स्वर्गेषु स्वर्गलक्ष्मीस्त्वं राजलक्ष्मीश्च भूतले 
नागादिलक्ष्मीः पाताले गृहेषु गृहदेवता | सर्वशस्यस्वरूपा त्वं सर्वैश्वर्यविधायिनी 
रागाधिष्टातृदेवी त्वं ब्रह्मणश्च सरस्वती | प्राणानामधिदेवी त्वं कृष्णस्य परमात्मनः 
गोलोके  स्वयम् राधा श्रीकृष्णस्य वक्षसि | गोलोकाधिष्ठिता देवी वृन्दावनवने वने 
श्रीरासमण्डले रम्या वृन्दावनविनोदिनी | शतश्रुङ्गाधिदेवी त्वं नाम्ना चित्रवलीति  ||
दक्षकन्या कुत्र कल्पे कुत्र कल्पे  शैलजा | देवमातादितिस्त्वं  सर्वाधारा वसुन्धरा ||
त्वमेव गङ्गा तुलसि त्वं  स्वहा स्वधा सती | त्वदंशांशांशकलया सर्वदेवादि योषितः ||
स्त्रीरूपं चापिपुरुषं देवी त्वं  नपुंसकं | वृक्षाणां वृक्षरुपा त्वं सृष्टा चाङ्कुररूपिणी ||
वन्हौ  दाहिकाशक्तिर्जले शैत्य स्वरुपिणी | सूर्ये तेजः स्वरुपा  प्रभारूपा ||
गन्धरूपा  भूमौ  आकाशे शब्दरूपिणी | शोभास्वरुपा चन्द्रा  पद्म संघे  निश्चितं ||
सृष्टौ सृष्टिस्वरुपा  पालने परिपालिका | महामारी  संहारे जले  जलरुपिणी ||
क्षुत्वं दया त्वं निद्रा त्वं तृष्णा त्वं बुद्धिरूपिणी | तृष्टिस्त्वं चापि पुष्टिस्त्वं श्रद्धा त्वं  क्षमा स्वयं ||
शान्तिस्त्वं  स्वयं भ्रान्तिः कान्तिस्त्वं कीर्तिरेव  | लज्जा त्वं  तथा माया भुक्तिमुक्तिस्वरुपिणी ||
सर्वशक्तिस्वरुपा त्वं सर्वसंपत्प्रदायिनी | वेदेऽनिर्वचनीया त्वं त्वां  जानाति कश्चन ||
सहस्त्रवक्त्रस्त्वं स्तोतुं   शक्तः सुरेश्वरि | वेदा  शक्ताः को विद्वान   शक्ता सरस्वती ||
स्वयं विधाता शक्तो    विष्णुः सनातनः | किं स्तौमि पञ्चवक्त्रेण रणत्रस्तो महेश्वरि ||
                 कृपा कुरु महामाये मम शत्रुक्षयं कुरु |
               इति श्रीब्रह्मवैवर्ते शिवकृतं दुर्गास्तोत्रं संपूर्णं |  ( श्रीकृष्णजन्मखण्ड ८८ | १५ - ३५ \ )